Saturday, October 13, 2007

हम कथा कीर्तन करने वाले लोग हैं, हमारा रहन-सहन बिलकुल सादा है....


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


मेरा नाम हरिशरण शास्‍त्री है। अब आपसे क्‍या छिपाना, शास्‍त्र वगैरह की कोई उपाधि नहीं मिली है। जाति से शर्मा ब्राह्मण हूँ। रामकथा कहता हूँ तो भक्‍तजनों ने स्‍वयं ही शास्‍त्री कहना प्रारंभ कर दिया, तो ठीक है। जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। आप हमें प्रेम से जिस नाम से पुकारें, उसी नाम से हम आपकी सेवा में हाजिर हो जाएंगे।

पहले मैं कथा, शादी-ब्‍याह, हवन इत्‍यादि करवाता था। पर कहते हैं न कि ज्ञानी वही है जो समय के साथ परिवर्तित हो जाता है। मेरी रूचि भी भगवत्कथा कहने में थी। लोग कथा शैली की प्रशंसा करते थे, तो मैंने भागवत तथा रामकथा कहना प्रारंभ कर दिया। अब ढेर सारे भक्‍त हो गए हैं।

आजकल लोगों की पसंद काफ़ी बदल गई है। लोग हम साधुओं से न जाने कैसी कैसी आस लगाए रहते हैं। कोई चाहता है कि मैं उन्‍हें योग की बारीकियाँ बताऊँ, तो कोई जन्‍मपत्री बनवाना और पढ़वाना चाहता है। बड़ी मुश्किल हो जाती है।

भक्‍तों का विश्‍वास तोड़ने का जी नहीं करता। इसलिए हाथ और माथा वगैरह देखकर भविष्‍य तो बता ही देता हूँ। विपत्तियों का तोड़ पूछते हैं, तो उन्‍हें हवन इत्‍यादि के उपाय बता देता हूँ। रत्‍न पहनने की सलाह मैं नहीं देता क्‍योंकि डरता हूँ कि कोई किसी पुखराज या मूँगे की अंगूठी लेकर आ जाएगा और सही है या गलत, जानना चाहेगा तो उसे संतुष्‍ट करना कठिन हो जाएगा।

आध्‍यात्‍म के क्षेत्र में माँग और पूर्ति का अध्‍ययन करने के बाद मैंने रामकथा और भागवत के क्षेत्र में काम करने का निश्‍चय किया है। गोसांई तुलसीदास भी कहते हैं कि रामकथा सुनने से हज़ारों यज्ञों का फल अनायास ही मिल जाता है।

कथा के समय दो-चार भक्‍त हारमोनियम तथा मंजीरे में संगत भी देते हैं, जिससे कथा और कीर्तन का मिला जुला संगीतमय आध्‍यात्मिक वातावरण बन जाता है। ये लोग तो विशुद्ध संगीतकार हैं, हमारी तरह साधू-संत नहीं हैं, इसलिए इनका पारिश्रमिक तो देना होगा। आप तो समझते हैं, कथा में इनका महत्‍व कितना अधिक होता है।

मेरा अपना तो कोई खर्चा नहीं है। आश्रम के लिए जो उचित लगे दे दीजिएगा। रहने की चिंता बिलकुल न करें। आप जैसे किसी गृहस्‍थ के घर में रह लूँगा। मैं भोजन भी एक ही टाइम करता हूँ। दो रोटी दूध के साथ, बस और कुछ नहीं। कोई ताम झाम मत करिएगा। दूसरे टाइम बस एक कटोरा काजू, किशमिश और फलाहार करता हूँ। सुबह नाश्‍ते में सादा हलुआ देसी घी में बनवा दीजिएगा। और पीने के लिए दो गिलास गाय का औटाया हुआ दूध आधी कटोरी शहद के साथ दे दीजिए।

सप्‍ताह में दो दिन तो उपवास ही रहता हूँ। उपवास के दिन मात्र चिरौंजी और किशमिश का सेवन करता हूँ। इसी तरह कुछ कंद मूल, फल-फूल खाकर, गौ माता का दूध पीकर....... अरे कहाँ चले जजमान.....सुनिए तो...... मेरे साथ मेरे कुछ चेले भी हैं जो जय-जयकार करने के लिए साथ ही चलते हैं..... ये लोग भी शाकाहारी ही हैं.........

4 comments:

Udan Tashtari said...

शास्त्री जी को प्रणाम-दूध कितनी देर ओंटाना है-साथ में पिश्ता भी पड़ेगा क्या? आप शरमाईये मत.

Anonymous said...

Maja aa gaya shastri-ji. Very good ... Lage rahiye ....

Nityanand Dubey :)

Anonymous said...

:) :)
धन्य हुए प्रभू आप के दर्शन पा कर. ऐसे महात्मा आज मिलते कहाँ है?

आनंद said...

@udan tashtari
खुश रहें जजमान, इसमें शरमाना क्‍या, जो श्रद्धा हो, पिश्‍ता, केसर वगैरह डाल दीजिए। दूध के खोआ बनने से थोड़ा पहले ही उतार लीजिएगा। :)

nityanand
धन्‍यवाद आपका, आप जैसे सुधीजन हैं तो कोई चिंता नहीं है, अनन्‍त काल तक लगे रहेंगे। ;)

संजय बेंगाणी
अरे कहाँ साहब, हम तो प्रभु के तुच्‍छ सेवक हैं, हमसे भी बड़े-बड़े महात्‍मा मिल जाएंगे :)

आनंद