Sunday, October 14, 2007

इतनी मँहगाई में नया प्‍यार कहाँ मिलेगा____


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


मेरा नाम सुरेंदर है। हमारा गाम दसरतपुर हरियाणा में पड़ता है जी। हमारे गाँव में बेकारी बहुत है। मेरा मेन काम तो लोहार का है। मैं अपनी दुकान को वर्कशॉप कहता हूँ। अब आप ही बताओ, जिस दुकान में लोहे का काम होता हो, उसे वर्कशॉप कहना क्‍या गलत है।

आज मैं आपको अपना दुख बताता हूँ जी। मेरी आधी उमर हो गई पर मेरे माँ बाप ने मेरी शादी ना करी। कहते हैं कि कहीं लड़की नहीं मिलती। उनका भी क्‍या दोष। हमारे इलाके में बहुत कम लड़कियाँ हैं जी, तो शादी के लिए लड़की नहीं मिलती।

पर मैं हाथ-पे-हाथ धरकर ना बैठा। काफ़ी भागी-दौड़ी की तो जाकर एक नेपाल की छोकरी मिली। पूरे पाँच हजार नक़द देने पड़े। उससे शादी करी। तब जाकर जिंदगी में कुछ रौनक आई। पैसा तो फिर आ जावेगा पर एक बार उमर निकल गई तो ना आने की।

मेरा एक चचेरा भाई था जी, उमर में मेरे से बड़ा था और वह भी छड़ा (अविवाहित) था। उसने बड़ा धोखा किया मेरे साथ। वह मेरे घर आता-जाता रहता था। मैं भी सोचता, मेरी घरवाली से थोड़ा हँस-बोल लेता है तो इसमें मुझे क्‍या दिक्‍कत है। यह गाँव तो आप जानते ही हो, यहाँ तो रेगिस्‍तान है जी। इसमें जनानी के पास घड़ी दो घड़ी बैठने से कोई तसल्‍ली पावे है तो इससे ज़्यादा पुण्‍य का काम कोई नहीं होता।

वह मेरी घरवाली को भगा ले गया और वह इसी गाँव में दूसरे घर में रहने लगी है। मैंने उससे बहुत झगड़ा किया पर अब वह यहाँ आने को राजी नहीं है। कहती है उसी के साथ रहूँगी। मैं अपने चचेरे भाई से फौजीदारी तो कर नहीं सकता था। इसमें खून-खराबा भी हो सकता था। सो मैं पंचायत गया।

मैंने पंचों से कहा कि मुझे अपनी घरवाली वापस चाहिए। उसे कभी कोई दुख-तकलीफ दिया हो तो मेरी ग़लती। पर उन्‍होंने मेरी बात ना सुनी। मेरी घरवाली कहती है कि अब उसे मेरे चचेरे भाई से प्‍यार हो गया है सो वह उसी के साथ रहेगी। मैंने पंचों से कहा कि मेरी घरवाली लौटा दे, चाहे मेरे से पाँच हज़ार और ले और अपने लिए दूसरी ले आए। पर पंचायत ने फैसला सुना दिया कि इसमें जबरदस्‍ती नहीं चल सकती। यदि इसकी मर्जी है तो वह मेरे चचेरे भाई के साथ ही रहेगी। पर इसके लिए मैंने जो पाँच हजार खर्च किए थे, उसे मुझे लौटाने का हुक्‍म सुना दिया।

मेरी समझ में नहीं आता कि मेरे प्‍यार में क्‍या खोट थी। मैं भी तो जी-जान लगा के प्‍यार करता था। पाँच हजार रूपए वापस तो मिल गए हैं पर अब मँहगाई बहुत बढ़ गई है। इतने में ऐसी सुंदर जनानी कहाँ मिलगी।

मेरा अभी भी अपने चचेरे भाई से मेल-जोल बना हुआ है। मैं अब उसके घर आता-जाता हूँ। जब तक कोई दूसरी नहीं मिल जाती, इसी से हँस-बोलकर गुजारा करना है____

4 comments:

Udan Tashtari said...

पहले आपने पुण्य कमाया..अब आपका चचेरा भाई कमा रहा है जो अपनी जनानी से आपको हंसने बोलने दे रहा है. लेकर भाग गया तो वो तो महा पुण्य कहलाया आपके लिये?? फिर क्या है? पैसे भी वापस मिल गये और महापुण्य ब्याज में...चोखा सौदा कहलाया. :)

Sagar Chand Nahar said...

आनन्द जी
मेरे चिट्ठे पर आपकी टिप्प्णी की लिंक से आपके चिट्ठे तक पहुँचा और एक लेख पढ़ने के बाद अच्छा लगा तो सारे लेख एक के बाद एक कर पढ़ लिये। पता नहीं क्यों पहले मुझे आपके लिंक का पता नहीं चला!!
आपके सारे लेख एक से एक बढ़कर बढ़िया है। बहुत बढ़िया लगे रहिये।

और हाँ....... आपसे सहानूभूति है, चचेरे भाई और आपकी पूर्व पत्नी ने बड़ा दगा किया आपसे। (इस लेख के सन्दर्भ में)

उन्मुक्त said...

सबसे ज्यादा महिला भ्रूण की हत्याऐं हरयाणा और पंजाब में हैं। महिला और पुरुष के बीच का अनुपात सबसे कम वहीं है। इस कारण न केवल इस तरह की घटनायें, पर कुछ और विकृतियां सामने आयेंगी।

आनंद said...

Udan tashtari
महापुण्‍य के चक्‍कर में नुक़सान तो हो गया, पर आपकी दुआ से मैं हिम्‍मत नहीं हारा हूँ। मैंने कहा न कि हँस-बोल रहा हूँ, बाक़ी उम्‍मीद पर दुनिया क़ायम है.... :-)

sagar chand nahar
नाहर जी, शायद आप को याद नहीं आ रहा है। मैंने 13 सितंबर को जब पहला पोस्‍ट लिखा था, तो पहले पहल आपने ही कमेंट लिखकर मेरा स्‍वागत किया था। देखें :
http://anand-ka-chittha.blogspot.com/2007/09/blog-post.html#c4872769239258460635
आपको लेख अच्‍छे लगे, यह जानकर मुझे बहुत अच्‍छा लगा। धन्‍यवाद.

उन्‍मुक्त
इन्‍हीं बदलाओं के कारण भविष्‍य के दृश्‍य काफ़ी अस्‍पष्‍ट हो गए हैं। सारा संतुलन ही गड़बड़ा गया है।

- आनंद