

मेरा नाम विनायक अहिरवार है, पेशा राजनीति, रीवा मध्यप्रदेश कर रहने वाला हूँ। सभी भाई बहन अपने अपने ठिकाने लग गए हैं। ठिकाने लगने का मतलब है कि भाई अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं, बड़े की नौकरी तो पहले से ही थी, छोटा कपड़ों का बिज़नेस करता है। दोनों बहनों की शादी हो चुकी है। यहाँ हमारी रिश्तेदारी बहुत बड़ी है। मेरा मानना है कि हर परिवार में कोई-न-सदस्य राजनीति में होना चाहिए। दूसरों का न सही, अपने घर में ही इतने काम रहते हैं एडमिशन से लेकर तबादले तक, बिजली-पानी के कनेक्शन से लेकर कोर्ट कचहरी तक, कि राजनैतिक जान-पहचान की ज़रूरत पड़ती रहती है।
मैंने एम.ए कर लिया, एल.एल.बी भी कर लिया पर नौकरी नहीं मिली। इसलिए मैंने पढ़ लिखकर राजनीति को अपना कैरियर बनाने का निश्चय किया है। राजनीति में पढ़े लिखे नेताओं की हमेशा ज़रूरत रही है और मैं तो शुरू से ही बोलने-चालने में अच्छा रहा हूँ। काफी विचार विमर्श कर काँग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता बन गया हूँ। हमारे क्षेत्र के युवा विधायक हैं श्री ईश्वर सिंह जी, वह मेरी बहुत इज्जत करते हैं। मैं उनका बहुत ही ख़ास चेला बन गया हूँ।
राजनीति में निष्ठावान तथा जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की बहुत ज़रूरत पड़ती है। शुरूआती स्तर पर छिछोरापन ठीक नहीं है। पहले विचारधारा के स्तर पर तो परिपक्व हो लें, फिर यदि ईमानदारी से काम किया जाए तो सत्ता भी मिल जाएगी। जनता का काम नि:स्वार्थ भाव से करना चाहिए। फिलहाल आप सबों की दुआ से अपना जेबखर्च निकल ही जाता है। मेरी दृष्टि स्थानीय राजनीति, छोटी मोटी उठापकट से काफी आगे है। मैं राष्ट्रीय राजनीति में अपना दखल बनाना चाहता हूँ। राजनीति में छात्रों का नेतृत्व करना आसान लगता है, पर इसमें बहुत जटिलताएँ भी शामिल होती हैं।
उस समय हम पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ़ के भारत आगमन के विरोध में जनमत तैयार कर रहे थे। छात्र शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है। हमारी नीति रही है कि छात्र नेताओं से संपर्क कर उन्हें अपने आंदोलन में शामिल करते हैं। छात्रों में नया जोश, नई ऊर्जा होती है। हम अपने कुछ पदाधिकारियों के साथ यहाँ के मेडिकल कॉलेज में जनआंदोलन के लिए छात्रों से मिले जुले तो वातावरण काफ़ी अनुकूल लगा। जहाँ एक ओर मुशर्रफ़ कारगिल लड़ाई का जिम्मेदार था, हमारे देश में अव्यवस्था फैलाने के लिए आतंकवादियों को शह देने की बात किसी से छिपी नहीं है। उसी खलनायक का स्वागत आज केंद्र सरकारी राज सम्मान के साथ कर रही है। इस सरकार को हमारे देश के आत्मसम्मान की ज़रा भी परवाह नहीं है! धिक्कार है!
यहाँ के छात्र नेताओं में काफी उत्साह था, इसलिए युवा विधायक श्री ईश्वरचंद ने स्वयं वहाँ एक मीटिंग ली।
"साथियों! कोई बात आप सब से छिपी नहीं है। इसलिए समय बरबाद न करते हुए मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ। हमारे हिंदुस्तान के टुकड़े करने का सपना देखने वाले मुशर्रफ का स्वागत हम नहीं होने देंगे। इसने ही हमारे कश्मीर पर, हमारी माँ बहनों पर अत्याचार कराया है। इसे तो गोलियों से भून देना चाहिए। और यह सरकार, अमेरिका की गुलामी कर रही है...।" ईश्वर जी ने वहाँ उपस्थित सभी छात्रों की अंतरात्मा को हिला कर रख दिया।
इसके बाद आंदोलन की रूपरेखा तय हुई।
"तो हमने इसके लिए भोपाल में 11 तारीख को एक रैली का आह्वान किया है। यहाँ से पूरी ट्रेन भरकर जाएगी। वैसे तो आप लोगों के रूकने, खाने पीने की व्यवस्था सब है, पर यदि कुछ गड़बड़ी हो तो आप अपना खर्च खुद करना पड़ सकता है। क्या हम अपने देश के लिए इतना भी नहीं कर सकते?" सभी छात्रों जाने के लिए तैयार थे।
"आप लोगों को अपनी कुछ कक्षाएँ छोड़नी पड़ेंगी, तो क्या आप सब तैयार हैं?"
"हाँ, बिलकुल तैयार हैं।"
"शाबास! यदि यहाँ के प्रिंसिपल ने कोई टांग अड़ाने की क़ोशिश की, तो क्या उनका विरोध करने के लिए?"
"हाँ, बिलकुल तैयार हैं।"
"यदि हम एकजुट रहे तो कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह हमारे अपने देश के स्वाभिमान की लड़ाई है। मैं आप लोगों को बता दूँ कि यदि प्रिंसिपल कल आप लोगों में किसी को रेस्टिकेट भी कर सकता है। क्या देश के लिए लड़ाई लड़ने को तैयार है। आप में से कितने लोग अपनी कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं? अपने हाथ उठाएँ!"
सारे हाथ खडे हो गए।
"और कितने लोग कुर्बानी नहीं दे सकते? हाथ उठाएँ। किसी के साथ कोई जबरदस्ती नहीं है।"
एक भी हाथ नहीं उठा। सभी छात्र देश के लिए अपनी कुर्बानी देने को तैयार थे। सबके मन में सरफ़रोशी की तमन्ना जोर मार रही थी। यह मेरे देश, भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद के देश के युवा हैं...!
ईश्वर जी प्रसन्न होकर कॉलेज से विदा हुए। उन्होंने विशेष तौर पर मेरी पीठ ठोंकी।
हमने अपने कार्यकर्ताओं के साथ भोपाल में रैली की, रैली बहुत अच्छी रही। पर उस मेडिकल कॉलेज से कोई नहीं आया। सुना है उनके परीक्षा की डेट एनाउंस गई थी और सब अपनी पढ़ाई में जुट गए थे।
आजकल छात्र राजनीति भी आसान नहीं रह गई। और इन मेडिकल कॉलेज के भगतसिंहों के सरफ़रोशी की तमन्ना का कोई भरोसा नहीं _____!