
मुझे बहुत ख़ुशी हुई जब मेरी नौकरी लगी थी। पैसा तो कम है, महीने भर का 3000 रूपया यानि कि रोज़ाना के 100 रूपए। मालिक कहता है कि ईमानदारी से काम करो तो आगे पैसा बढ़ा देगा।
मैं भरतकुमार थपलियाल, गढ़चिरौली का रहने वाला हूँ। दोस्तों के पास दिल्ली घूमने आया था और फिर ऐसा मन लगा कि यहीं रह गया। यहाँ दिल्ली में हमारे आसपास के गाँवों के बहुत सारे लोग हैं जो फैक्टरियों में नौकरी करते है। मैं हिंदुस्तान सिक्योरिटी में लग गया। आजकल मेरी ड्यूटी सेंट थॉमस स्कूल में है। सिक्योरिटी वाले ने स्कूल पर सिक्योरिटी गार्ड सप्लाई का ठेका साल भर के लिए ले रखा है। पहले बड़ा ताज्जुब होता था हमें तनख़्वाह कोई और देता है, हुक्म किसी और का बजाना पड़ता है।
मुझे वर्दी पहनकर काम करने में बड़ा मज़ा आता है। इसमें पैसा तो कम है पर पॉवर बहुत है। हम किसी को भी आने वाले को रोककर पूछताछ कर सकते हैं। बड़े-बड़े लोग अंदर जाने के लिए रिक्वेस्ट करते हैं।
अभी पिछले हफ़्ते की बात है, मेरा मूड कुछ ख़राब था। तभी स्कूल में एक आदमी आया, वह शायद किसी बच्चे का बाप था।
"क्या काम है?" मैंने उससे पूछा।
"अंदर ऑफिस में जाना है।"
"ऑफिस में क्या काम है?"
"अरे भाई, प्रिंसिपल से मिलकर कुछ बात करनी है।" उस आदमी ने कुछ रूखे स्वर में कहा।
"सर, अंदर जाना एलाऊड नहीं है।"
"अरे, कुछ ज़रूरी बात करनी है। कैसे एलाऊड नहीं है?" उसका स्वर और तेज़ हो गया।
"जब तक अंदर से हमें आदेश नहीं होगा, हम अंदर नहीं जाने नहीं दे सकते। आपको कोई बात करनी है तो फोन से करिए।"
"ज़रूरी बात है, फोन से नहीं हो सकती, मुझे खुद मिलना है, आप मेरा कार्ड प्रिंसिपल को भिजवाइए।" वह मुझसे झगड़ा करने लगे।
"मेरा ड्यूटी कार्ड देने का नहीं है। यहाँ कार्ड देना एलाऊड नहीं है।" मैं भी अड़ गया। साला, मुझसे अकड़ कर बात करता है।
"तू कैसे रोक सकता है? प्रिसिपल कहाँ है? अच्छा तमाशा बना रखा है।" वह अपना मोबाइल फ़ोन निकालकर नंबर मिलाने लगा।
"सर, रास्ते से हट जाइए, रास्ते में खड़ा होना एलाऊड नहीं है।" मेरी इच्छा भी है कि प्रिंसिपल मुझे खुद यहाँ से हटा दे। ऐसी वाहियात नौकरी छूट जाए तो ही ठीक है।
अगले दिन ठेकेदार ने बुलवाया। ठेकेदार ने बताया कि प्रिंसिपल मेरी तारीफ़ कर रहा था। "ऐसे ही मन लगाकर काम करो, खूब तरक्की करोगे।" मेरी तनख़्वाह में पाँच सौ रूपए की बढ़ोत्तरी हो गई थी। मेरी तीन दिन की छुट्टी भी मंजूर हो गई थी।
इस शहर का हिसाब-किताब अब मेरी समझ में आने लगा था। मैंने अपने चचेरे भाई को भी गाँव से बुला कर सिक्योरिटी गार्ड में लगा दिया है। उसे अच्छे से समझा दिया है कि चाहे कहीं भी ड्यूटी हो, किसी को भी अंदर घुसने मत दो। याद रखो "हमेशा यही कहो कि यहाँ एलाऊड नहीं है। आने वाला जितना ज़्यादा परेशान होगा मालिक उतने ही अधिक खुश होंगे।"
वह पूछता है, "क्यों? अपने मिलने वाले को परेशान करने से मालिक क्यों खुश होता है?"
"इससे उसकी औक़ात कुछ और बढ़ी महसूस होती है, उसे लगता है "एलाऊड नहीं है" सुनकर आने वाले के मन में रौब पड़ता होगा ...।"