Wednesday, February 13, 2008
जो मरद अपनी औरत को “भूलभुलैया” नहीं दिखा सकता, वह किस काम का...?
मेरा नाम रामरत्ती बाई है। मैं दिशापुर गाँव में रहती हूँ। हमारे दिशापुर में कई आफिस हैं जिनमें बड़े-बड़े अफसर नौकरी करते हैं। मैं इन अफसरों के घरों में झाड़ू बरतन करती हूँ।
पहले मैं मज़दूरी करती थी। मज़दूरी में पैसा तो अधिक था, पर काम रोज़ रोज़ नहीं मिलता था। झाड़ू-बरतन, एक तो महीने भर का काम है और दूसरे इसमें पैसा बँधा-बँधाया मिलता है। शुरू के हफ़्ते में थोड़ी दिक्कत होती है, पर बाद में जब हाथ सेट हो जाए, तो काम फटाफट होने लगता है। मुझे तीन-चार घर निपटाने होते हैं, इसलिए मैं काम जल्दी ही करती हूँ।
शुरू-शुरू साहबों की बीबियाँ हमारी हरकतों पर नज़र रखती हैं, पर एक बार भरोसा जम जाए तो पूरा घर भी हमारे जिम्मे छोड़ देती हैं। बीबियों के मेरे हाथ का काम बहुत पसंद आता है।
जितने किस्म के साहब, उतनी ही किस्म की उनकी बीबियाँ। सब दूसरों के घरों के अंदर की बातें जानने की कोशिश करती हैं। तहसीलदार साहब की बीबी घुमा फिराकर पूछती है कि नायब तहसीलदार के घर इतनी रौनक क्यों रहती है। नायब तहसीलदार की बीबी पूछती है कि फूड इंस्पेक्टर के घर कौन-कौन आता-जाता है। मैं तो साफ कह देती हूँ “भई, दूसरों के घर क्या होता है, मुझे कुछ नहीं पता। हाँ मेरे बारे पूछो तो सब सच-सच बता दूँगी।” जब अपने दिल में खोट नहीं तो क्या डरना।
“रत्ती बाई, बेबी को दो घंटे खिलाने (देख रेख करने) का काम है। बता तेरी नज़र में कोई है।” नायब तहसीलदार बीबी ने पूछा।
उनका एक छोटा बेबी है। उन्होंने मुझसे कहा था खिलाने के लिए, पर मैंने मना कर दिया। मेरे पास बिलकुल टाइम नहीं है। और जितने समय में बच्चा खिलाने का काम होगा, उतने में तो मैं दो घर और निपटा सकती हूँ। पर मेरे लिए चार घर ही काफी हैं। और ज़्यादा घर पकड़ने का बिलकुल मूड नहीं है।
मुझे गाना सुनने का बहुत शौक है। मैंने सबको पहले ही बता दिया कि मैं काम करते समय रेडियो चलाकर सुनती हूँ। मंजूर हो तो बोलो हाँ, नहीं तो नमस्ते। और आजकल अफ़सरों के घर रेडियो तो ज़रूर होता है।
हमारे गाँव में कोई सिनेमाहॉल नहीं है। वहाँ से सबसे पास का सिनेमाहॉल बिचपुरी का “सपना” है, जिसमें फिल्म देखने के लिए बिचपुरी दो घंटे बस में जाना पड़ता है। जब भी वहाँ कोई सिनेमा लगता, उसकी खबर हमारे गाँव में भी लगती। मुझे फिल्म देखने का भी बड़ा शौक है।
फिल्मो में सलमान खान मेरा फेवरेट हीरो है। जिस दिन ऐश्वर्या राय उसको छोड़कर अभिषेक बच्चन से शादी की, मैंने नायब तहसीलदार बीबी से बोल दिया, “आजकल की हीरोइनों को हीरो से नहीं, हीरो के पैसे से प्यार है।” अमिताभ बच्चन के पास ज़्यादा पैसा है, इसलिए वह सलमान को छोड़कर अभिषेक के पास गई। आजकल का जमाना ऐसा ही है।
“रत्ती बाई, फूड इंस्पेक्टर का अपनी बीबी से झगड़ा हुआ क्या? अचानक मैके कैसे चली गई?” नायब तहसील दार की बीबी ने पूछा।
“पता नहीं बाई। उनके घर क्या हुआ, मेरे को कुछ नहीं पता।” मैंने साफ कह दिया “बाई। आप मेरे घर की बात पूछो तो मैं बता सकती हूँ। और दूसरों की बात नहीं बता सकती।”
“चल-चल। बड़ी आई शराफत बताने वाली।” बीबी नाराज़ हो गई। पर मैं जानती थी वह ज़्यादा देर चुप नहीं बैठेगी।
“तूने अपना मरद क्यों छोड़ दिया?”
“ऐसे ही, वह मुझे पसंद नहीं था।”
“क्या मार-पीट करता था?”
“नहीं। वैसे तो बड़ा भला आदमी था। पर मुझे पसंद नहीं था। बड़ा कंजूस था। उसने वादा किया था कि मुझे “सपना” में “भूलभुलैया” दिखाने ले जाएगा, पर नहीं ले गया।”
“बस? इसी लिए उसे छोड़ दिया?” बीबी ने बड़ी हैरत से पूछा।
“हाँ...! इसीलिए...। और मैं अपना खर्चा खुद करने के लिए तैयार थी। फिर भी मेरी बात नहीं सुनता। उसे मेरी कोई परवाह ही नहीं है...।”
बीबी मेरा मुँह देखती रही। मैं उन्हें बता रही थी कि कैसे मैं अकेली बिचपुरी जाकर ‘भूलभुलैया’ देखकर आई। जो मरद अपनी औरत को “भूलभुलैया” नहीं दिखा सकता, वह किस काम का...? मैंने अब दूसरा मरद रख लिया है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
रोचक, रामरत्ती बाई के नजरिये से देखने का यत्न करते हैं। अभी तो कुछ ज्यादा समझ नहीं आया। अभी तो रामरत्ती बाई अंग्रेजी फिल्म की हीरोइन सी लग रही है!
रामरत्ती तो बड़ी एडवान्स टाईप की बाई है..कहीं बीबीजी पर उसकी सोच का असर हो लिया तो गजब हो जायेगा. :)
पैसा सबको "भूलभुलैया" दिखा देता है चाहे वो फिलम की हिरोइन हो या रामरत्ती बाई!
बहुत खूब !
बढिया नेरेटिव ।
sandoftheeye.blogspot.com
बहुत खूबसूरत..
http://kavikulwant.blogspot.com
कवि कुलवंत सिंह
रामरत्ती जैसी बाइयां आज कल आम बात है, सिर्फ़ मर्दों को ये बात समझने की देर है
Post a Comment