Thursday, September 13, 2007
दो हाथ मेरे भी
पिछले कुछ दिनों से अंतर्जाल पर भटकते हुए अचानक हिंदी वेबसाइटों पर नज़र पड़ी तो जैसे कोई खजाना मिल गया। इतने सारे ब्लॉग, इतने विचार विमर्श चल रहे हैं, और मैं उनसे अब तक वंचित था। खैर, देर आए दुरूस्त आए। जब इतनी बड़ी कार सेवा चल रही है, तो उसमें मेरा भी योगदान होना चाहिए। जहाँ भी कुछ नया बड़ा काम होता दिखे उसमें फौरन अपने भी दो हाथ लगा देता हूँ। इन हाथों से महायज्ञ का कोई भला हो न हो, पर इनका कल्याण ज़रूर हो जाएगा।
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7 comments:
चलिये जब आपने लिखना शुरु कर ही दिया है तो फटाफट चार लेख लिख दीजिये, उसके बाद ना आप छोड़ पायेंगे ब्लॉगिंग को ना ब्लॉग आपको छोड़ेगा। :)
आपने यूनूस भाई के लेख में टिप्प्णी दी है कि रोज रोज विषय कहाँ से लाऊंगा। इस पर मैं कहना चाहूंगा कि आप एक बार लिखना तो शुरु किजिये बाद में देखिये विषय कैसे अपने आप मिलते जायेंगे आप को।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
क्षमा कीजिये मैं आपका स्वागत करना भूल गया, हिन्दी चिठ्था जगत में आओअका हार्दिक स्वागत है।
:)
I am completly agree with sagar sahab. And also there is a great saying "Itni der kabhi bhi nahi hoti ki Shuruvat na ki ja sake"
Nityanand Dubey
धन्यवाद सागर तथा नित्यानंद जी, आप लोगों की शुभकामनाएं चाहिए, फिर तो मैं लिख ही लूंगा। बहुत बहुत धन्यवाद
स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में।
धन्यवाद उन्मुक्त जी,
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद, आप लोगों के चिट्ठों से प्रेरणा पाकर ही इसकी शुरूआत हुई है। आशा करता हूँ आप बराबर अपनी टिप्पणियाँ लिखकर मेरा मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन करते रहेंगे।
धन्यवाद,
आनंद
आनंद मुबारक को मित्र ।
अब तुम्हें जो भी मदद चाहिये मैं और मेरी टोली के लोग मुस्तैदी से तैनात हैं ।
निसंकोच बताना ।
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