Tuesday, September 25, 2007

मशीनें हमें सिखाती हैं!

मशीनों ने अपने काम से लोगों को कई प्रकार की सीख प्रदान की है। कोई यह सीखता है कि अनुशासन क्‍या है और कोई यह कि बिना रुके कैसे लगातार काम करते हैं। मैं यहाँ उन रिकॉर्डिंग मशीनों की बात कर रहा हूँ जो टेलीफ़ोन के साथ जोड़ी जाती हैं, तथा मधुर आवाज़ में कॉल करने वालों का मार्गदर्शन करती हैं।

थोड़ा फ़्लैश बैक... दो साल की बात है। मैं बिजली के दफ़्तर (हेल्‍पलाइन पर) फोन करता था, मेरा फ़ोन उठाने के लिए वहाँ कोई मौजूद नहीं होता। घंटी बजती जाती। मैं फिर फोन करता, फिर घंटी बजती जाती। ऐसा प्रतीत होता कि वहाँ बैठा व्‍यक्ति अत्‍यंत व्‍यस्‍त है और उसे फ़ोन उठाने का वक़्त नहीं मिल पा रहा है। कभी-कभी तो फ़ोन के इंगेज होने की टोन सुनाई पड़ती। यह टोन घंटों तक क़ायम रहती। ऐसा जान पड़ता कि उस फ़ोन पर बैठा व्‍यक्ति किसी अज्ञात ज़रूरतमंद से बात कर रहा है और उसकी समस्‍या हेल्‍पलाइन पर ही हल कर रहा है। कभी भूले-भटके कोई उठा लेता तो उसके बात करने का अंदाज़ अत्‍यंत रूखा होता। लगता कि समस्‍या का समाधान भले न हो पर बात तो ठीक से होनी चाहिए।

शायद उन्‍हें यह बात जँच गई, कि समस्‍या का समाधान हो न हो, पर बात तो मीठी होनी चाहिए। उन्‍होंने वहाँ कोई मशीन लगाई। अब एक घंटी बजने के बाद संगीतमय मीठी आवाज़ में उत्तर मिलता – "यहाँ (दफ़्तर का नाम) में आपका स्‍वागत है। आपकी कॉल हमारे लिए महत्‍वपूर्ण है।" और बाक़ी की घंटी उसके बाद बजती रहती। इधर फ़ोन करने वाले की कॉल का मीटर चल पड़ता। शिकायत तो दर्ज नहीं जो पाती पर अब मेरी हिम्‍मत नहीं कि मैं बार-बार फ़ोन करता। उन्‍होंने ग्राहकों को मीठी आवाज़ सुनाने वाली समस्‍या का समाधान जो कर दिया था।

अभी पिछले दिनों की बात है। मैंने इंटरनेट ख़राब होने की शिकायत दर्ज करने के लिए अपने इंटरनेट प्रदाता (महानगरों की जीवनरेखा) के हेल्‍पलाइन नंबर पर फ़ोन किया। हेल्‍पलाइन नंबरों की विशेष बात यह है वह बेहद आसान होते हैं ताकि उन्‍हें डायल करने में कोई कठिनाई न हो, मैं गदगद हो गया, उन्‍हें हमारा कितना ख्‍याल है। अब नंबर डायल करने पर मीठी आवाज ने अहसास दिलाया कि मेरी कॉल उनके लिए कितनी महत्‍वपूर्ण है और एक-एक कर मुझसे कई नंबर दबवाए। ताज्‍जुब की बात है कि वह आवाज़ एक स्‍वचलित मशीन से आ रही थी। इसी मशीन ने मेरा प्रतीक्षा काल 100 सेकंड बताया जिसे मैंने सब्र से बिताया। अभी तक किसी जीवित व्‍यक्ति से कोई बात नहीं हो पाई थी। 100 सेकंड बीत गए, मशीन बताती रही कि मेरी अहमियत उनकी नज़रों में कितनी ज़्यादा है, मैं अपनी बारी का इंतज़ार करता रहा, 200, 300, 400 सेकंड भी बीत गए पर मेरा प्रतीक्षाकाल समाप्‍त नहीं हुआ।

मैंने फिर से नए सिरे से दो-तीन बार प्रयास किया पर हर बार यही हुआ। ऐसा लगा कि काश! यह बोलने वाली मशीन मेरे सामने होती, या इसे लगाने वाला व्‍यक्ति मुझे कहीं मिल जाता ! मैने सब्र से काम लिया। इस मशीन ने सिखाया कि मनुष्‍यों को परेशानी में सब्र से काम लेना चाहिए।

इसी मशीन में एक विकल्‍प था कि मैं अपना नाम तथा फ़ोन नंबर बोलकर दर्ज करा दूँ ताकि मेरी बारी आने पर कस्‍टमर केयर अधिकारी स्‍वयं फ़ोन कर लेगा। मैंने यह भी किया। अपना नाम तथा फ़ोन नंबर पिछले तीन दिनों से 4 बाद दर्ज करा चुका हूँ पर अभी तक किसी का फ़ोन नहीं आया।

इससे भी मुझे एक सीख मिली। वह सीख थी "कर्म किए जा, फल की इच्‍छा मत कर!"

1 comment:

Udan Tashtari said...

आधा नुस्खा तो पश्चिम से ले आये हैं यह मशीनें लगा कर, आधा उनका जबाब देना और सही इस्तेमाल करना भी आ जायेगा. सब्र रखें, सब कुछ कतार में है. :)