Thursday, October 18, 2007
मैं सच्चे दिल से ठाकुर साहब की मदद करना चाहता हूँ___
मैं पड़ोसियों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता हूँ। बाल-बच्चेदार आदमी हूँ। सुख-दुख तो लगा रहता है। जब हम किसी के काम आएंगे तभी तो कोई हमारे भी काम आएगा। यदि कोई हमारे काम न भी आए तो क्या हुआ, इंसानियत के नाते हमारा जो भी फ़र्ज बनता है, उसे पूरा करना चाहिए।
मैंने एक उसूल बना लिया है। जहाँ भी मौका मिले मदद करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। पड़ोस में ठाकुर साहब के घर शादी है। मैं जानता हूँ कि शादी का घर है, इसमें हज़ारों काम होते हैं। ऐसे में सच्चे पड़ोसी का धर्म निभाने चला गया।
"और ठाकुर साहब, क्या-क्या काम बचा है?"
"अजी, आपके आशीर्वाद सब काम ठीक ही चल रहा है। सारा काम कांट्रैक्टर को दे दिया है। कैटरर, टेंट वगैरह सब वह ठेकेदार देखेगा।"
"फिर भी आप नज़र रखिएगा। इन ठेकेदारों का कोई भरोसा नहीं।"
"वो तो है जी, उससे रोज-रोज मिलकर पूरे काम की रिपोर्ट लेता हूँ। वैसे, बताते हैं कि ये ठेकेदार बढ़िया आदमी है।"
"और मेरे लायक कोई सेवा?" मैंने पूछा। हमारे जमाने में...मुझे याद आता है कि गाँवों में हम लड़के मिल जुलकर सारा काम करते थे। यह ठेकेदार वगैरह तो आज आए हैं। गाँवों में आप अभी भी जा कर देखिए, खाना परोसने से लेकर बारात की पूरी खातिरदारी तक का काम गाँव वाले मिल जुल कर ही करते हैं।
"अभी तो नहीं, जब लगेगी तो बिलकुल याद करेंगे जी। आपको नहीं कहेंगे तो किसको कहेंगे।"
"बिलकुल ठाकुर साहब, कोई भी काम हो, कोई भी ज़रूरत हो तो आधी रात को आवाज़ दीजिएगा.....।"
"एक छोटी सी समस्या है.... हमारे घर बहुत से मेहमान आ गए हैं। काफ़ी भीड़ हो गई है। यदि आपके घर में एक कमरा मिल जाए तो कुछ लोगों को उसमें रूकवा सकते हैं।"
"हाँ क्यों नहीं...पर..." मैं कुछ बोलता रूक गया। मुझे याद आया कि मेरे सास-ससुर भी तो आने वाले हैं।
"अब क्या बताएँ ठाकुर साहब, मेरे सास-ससुर भी कल ही आने वाले हैं। वो ठहरे बूढ़े लोग। ऐसे में कमरा देना तो संभव नहीं हो पाएगा। यदि आप चाहें तो कहीं किराए से लेने के लिए तलाश करूँ?"
"नहीं। फिलहाल तो नहीं। जब लगेगी तब देखेंगे। अरे हाँ, आपके घर पानी का बड़ा ड्रम है। वह एकाध हफ़्ते के लिए मिल जाता तो...? दरअसल पानी की खपत बहुत बढ़ गई है, इसलिए...।"
"ज़रूर, क्यों नहीं।" मैंने कहा। तभी मुझे ध्यान आया कि आजकल पानी की कटौती चल रही है। कई बार नल एक ही टाइम आता है, ऐसे में ड्रम देने से गड़बड़ हो जाएगी। "ओह, ठाकुर साहब, आपको तो पता ही है, मेरे सास-ससुर आ रहे हैं, बूढ़े लोग हैं, तो पानी की खपत बढ़ जाती है। मैं माफ़ी चाहता हूँ, यदि आप कहें तो मैं किसी टेंट वाले से बात करूँ, उनके पास एक्स्ट्रा ड्रम होता है।"
"नहीं कोई बात नहीं, फिलहाल तो काम चल ही रहा है। जब ऐसी नौबत आएगी तो मैं खुद ही टेंट वाले से बात कर लूँगा।"
"कोई और काम हो तो अवश्य बताइएगा।"
"ज़रूर। अरे हाँ, आपके यहाँ एक सिलेंडर एक्स्ट्रा है क्या? हमारा गैस वाला आज शाम तक डिलीवरी करेगा।"
"गैस... " मुझे याद आया कि एक बार हमने इसी तरह एक दिन के लिए सिलेंडर पड़ोस के खान साहब को दिया था। एक हफ़्ते तक उन्होंने सिलेंडर नहीं लौटाया और इसी बीच हमारी गैस ख़त्म हो गई थी।
"हमारा सिलेंडर भी खाली पड़ा है। हमने तो दो तीन दिन पहले बुक कराया था, पर पता नहीं क्यों.. अभी तक आया नहीं, मैं आज पता करता हूँ।"
"कोई बात नहीं जी, मैं कहीं और देख लेता हूँ।"
"और कोई बात हो तो आप निस्संकोच...."
"यह भी कोई कहने की बात है?"
मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, और किसी न किसी तरह ठाकुर साहब की कोई मदद करना चाहता हूँ। मेरी अपनी विवशताएँ है, इसी कारण... पर यक़ीन करें। मैं सच्चे दिल से उनकी मदद करना चाहता हूँ।
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5 comments:
Aap ki bhavanaon se lagata hai ... ki aap sachmuch hi "Tan - Man" se thakur sahab ki madad karna chahte the ... lekin "things" ke mamle me thode kamjor pad gaye ....
Khair aapki bhi majboori hai .... agar saas-sasoor nahi aate to shayad koi aur paristhitiya aa jati .... :)
hum aapki bhavan ki kadra karte hai :-)
ठाकुर साहब के भाग खुल गये आपसा मददगार पड़ोसी पा कर :).आज अपना नाम नहीं बताया??
बढ़िया व्यंग्य आज के लोगों की मानसिकता पर !
भगवान आप जैसे चिंतक पड़ोसी सब को दे.
nityanand dubey
आप सही कद्रदान मिले हैं, जो मेरी भावनाओं को बिलकुल ठीक तरह समझते हैं :-)
धन्यवाद।
udan tashtari
आप एक बार ठाकुर साहब से मिलकर यही बात बता दीजिए, आमने सामने। कैसी प्रतिक्रिया करते हैं, कितना गदगद होते हैं, देखने की बड़ी तमन्ना है।
और हाँ, आज नाम आनंद ही है।
manish
धन्यवाद मनीष जी।
काकेश
भगवान ज़रूर देता है जी, सबको देता है। आप को भी दिया होगा, ज़रा गौर से देखिए। :-)
आनंद
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