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Thursday, October 25, 2007
छोटे शहर की छोटी मानसिकता_____
मेरा नाम डी.पी. यादव है, एम.ए., एम.एस-सी., बी.एड. हूँ और सिहोरा के शासकीय हाई स्कूल में शिक्षक हूँ। सिहोरा शहर काफ़ी तेज़ी से विकास कर रहा है। अब तो यहाँ एम.एस-सी. तक का कॉलेज, दो हाई स्कूल, तथा एक गर्ल्स हाई स्कूल, दो प्राइवेट नर्सिंग होम, एक स्टेडियम, एक आई.ए.एस. कोचिंग सेंटर भी खुल गया है। यहाँ से पढ़े बच्चे देश भर में अपने सिहोरा गाँव का नाम रोशन कर रहे हैं। अब यह गाँव कहाँ रहा, अच्छा खासा शहर हो गया है।
यहाँ बायोलॉजी की कक्षा में अध्यापन कार्य कर रहा हूँ। पिछले 15 वर्ष से बायोलॉजी अध्यापन के क्षेत्र में मेरा नाम है। आसपास के शहरों से विद्यार्थी ट्यूशन पढ़ने मेरे पास आते हैं। पर मैं हर किसी को नहीं पढ़ाता। मेरे स्कूल से भी अनेक बच्चे मेरे पास आते हैं। ट्यूशन पढ़ना या न पढ़ना छात्रों की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। मैं किसी पर कोई दबाव नहीं डालता, किसी को मैं बाध्य नहीं करता। जिसे पढ़ना है पढ़े, जिसे नही पढ़ना वह स्वाध्याय कर परीक्षा देने के लिए स्वतंत्र है। अपने नंबरों के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होगा। मेरा आशीर्वाद उसके साथ है।
यहाँ के लोगों की मानसिकता अभी भी पिछड़ी हुई है। एक लड़का है सुंदर लाल। बारहवीं का छात्र है। पढ़ने में तेज़ है। ईश्वर ने उसे बुद्धि अच्छी दी है पर उसे इसका घमंड हो गया है। मेरे पास ट्यूशन नहीं पढ़ता और कहता है कि स्वयं ही क्लास में फ़र्स्ट आकर दिखाएगा। वह एक दिन प्रिंसिपल के पास शिकायत लेकर पहुँच गया कि यादव सर लड़कों को प्रेक्टिकल नंबर कम देते हैं और लड़कियों को नंबर ज़्यादा देते हैं।
आप तो जानते हैं कि छोटे शहर के लोग और उनकी वैसी ही ओछी मानसिकता। लड़कों को पूरे समय नेतागिरी करने, क्रिकेट वगैरह से फुरसत नहीं मिलती। लड़कियाँ मन लगाकर प्रेक्टिकल में भाग लेती हैं। उनकी हैंडराइटिंग सुंदर होती है। उनका मौखिक साक्षात्कार अच्छा होता है इसलिए उनके नंबर अधिक आते हैं। एक शिक्षक के नाते हमें अपने छात्रों का संपूर्ण व्यक्तित्व जाँचना होता है। प्रेक्टिकल नंबर और किसलिए होता है?
अभी परसों तो हद हो गई। वह प्रिंसिपल के पास पहुँच गया और कहने लगा कि यादव सर नीता के सिर पर हाथ फेर रहे थे। नीता उसी की सहपाठी है, और बहुत अच्छी लड़की है। मेरा लेक्चर बड़े ध्यान से सुनती है। क्या एक शिक्षक स्नेह से अपने विद्यार्थियों के सिर पर हाथ नहीं फेर सकता? मैंने प्रिंसिपल साहब से कह दिया कि चाहे जिसकी कसम खवा लो, मैं नीता के सिर पर ममत्व युक्त स्नेह से हाथ फेर रहा था। सुंदरलाल कहने लगा कि हम भी तो आपके छात्र हैं, हमारे सर पर भी ममत्व वाले स्नेह से हाथ फेरो। ठहर साले! इसी ममत्व वाले हाथ से तेरा टेंटुआ न दबा दूँ_____!
Saturday, October 20, 2007
"ट्रांसफ़र का काम है" कहना पर्याप्त नहीं है ____
मेरा नाम सेवाराम है। शिक्षा विभाग में नौकरी करता हूँ। नहीं जी, मास्टर (शिक्षक) नहीं हूँ। ऐसी किस्मत कहाँ। मैं तो मामूली सा क्लर्क हूँ। पोस्टिंग जिला शिक्षा विभाग मुख्यालय, होशंगाबाद में जिला शिक्षा अधिकारी के साथ है। मेरे नाम की तरह ही मेरा काम भी सेवा करने का है।
मुझे शिकायत है कि आजकल लोग अपने कामों को लेकर काफ़ी लापरवाह हो गए हैं। कोई भी लेन-देन या हिसाब-किताब जुबानी रखना ठीक नहीं होता, कभी भी धोखा हो सकता है। अभी पिछले माह की बात है। मेरे पास रामायण प्रसाद आया।
"यह लीजिए दस हज़ार रूपए, ट्रांसफ़र का केस है।" रामायण प्रसाद का काम 'लोगों का काम करवाना' है। नेताओं के आगे पीछे भी फिरता रहता है। लड़का तेज़ है, आगे जाएगा।
"किसका ट्रांसफ़र?" मैंने पूछा।
"तिवरा के रमेश शर्मा, प्राइमरी टीचर का।"
साल में एक बार ट्रांसफ़र का सीजन आता है। इस समय हर सरकारी नौकरी धारी शिक्षक सतर्क हो जाता है। जिसे कोई भूल-सुधार करनी होती है, पूरा मौक़ा मिलता है। कोई पर्दा नहीं है, हर आदमी जानता है कि काम कराना है तो किससे संपर्क करना पड़ेगा।
"दरख़्वास्त कहाँ है?" हर काम के लिए आवेदन पत्र देना आवश्यक होता है।
'वो तो नहीं है। अरे आप लोगों भी कहाँ दरख़्वास्त वगैरह के चक्कर में पड़े हैं। पैसा पूरा एडवांस में दिया है, फिर क्या दिक्कत है।"
"क्या काम है, यह तो पता चले।"
"अभी बताया न, ट्रांसफ़र का काम है।"
"अरे भैया, ट्रांसफ़र रोकना है कि ट्रांसफ़र करवाना है?"
"ट्रांसफ़र रोकने का काम होगा...शायद। कोई ट्रांसफ़र करवाने के पैसे थोड़े ही देता है?" वह हड़बड़ाया।
"ऐसे शायद से काम नहीं चलता भैया, पूरा पक्का करो।
"मैं पक्का कह रहा हूँ ट्रांसफ़र रोकने का ही काम है। आप तो बड़े शक्की आदमी हैं।"
"इसमें मज़ाक नहीं है, ज़िंदगी का सवाल है। आप लोग काम को सीरियसली लिया करो।" मैंने उसे समझाया। "हमें हज़ारों ट्रांसफ़रों का हिसाब रखना पड़ता है। ऐसा करो, पैसा यहीं छोड़ दो। जाकर दरख़्वास्त बना लो, ट्रांसफ़र करना है, कहाँ करना है या रोकना है सब कुछ लिखा होना चाहिए?"
वह भुनभुनाता हुआ चला गया।
पहले एक बार इसी तरह गड़बड़ हो गई थी। किसी सज्जन ने अपने दुश्मन का ट्रांसफ़र रिमोट एरिया में करने के लिए पैसे दिए थे, पर गलती से उनका ही ट्रांसफ़र हो गया। लिया गया पैसा वापस तो हो नहीं सकता था क्योंकि उसमें अधिकारी से लेकर चपरासी तक का हिस्सा रहता है, तो अगले साल दो ट्रांसफ़र फोकट में करने पड़े, बेइज्जती हुई सो अलग।
आप ही बताइए "ट्रांसफ़र का काम है" कहने से क्या क्लीयर होता है? अब यह बात इन झोला छाप नेताओं को कौन समझाए___।
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