Friday, October 24, 2014

पुतले हैं तो क्‍या हुआ





चिंता की कोई बात नहीं है। ज़ंजीर में इंसान नहीं पुतले हैं और यह फोटो अफगानिस्‍तान की नहीं, उत्तमनगर दिल्‍ली की है।


उस दिन में उत्तमनगर की गलियों में भटक रहा था। अचानक एक दुकान में दो-तीन पुतले दिखाई दिए। वैसे तो वे बड़े सुंदर थे, परंतु शायद कैद में रहने के कारण उनके चेहरे के एक्‍सप्रेशन कह रहे थे - हेल्‍प मी, प्‍लीज़..., हमें यहाँ से निकालो... ।

वे नहीं जानते थे कि ये बंधन उनकी सुरक्षा के लिए हैं। उनका मालिक उन्‍हें बहुत प्‍यार करता है, इसलिए। कमबख्‍त कोई कानूनी धारा भी नहीं है, जो उनका प्रोटेक्‍शन कर सके। यूँ भी यह उनका घरेलू मामला था और हमारा हस्‍तक्षेप बनता नहीं था।

फिर भी... अचानक लगता है कि कुछ करना चाहिए था...

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