Thursday, February 28, 2008
देने के लिए मेरे पास सलाह के अलावा कुछ है भी नहीं.......!
इस देश में बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई है। आजकल एक से बढ़कर एक इंटैलिजेंट बच्चे नौकरी की तलाश में मारे-मारे फिर रहे हैं। योग्यता का कोई मोल नहीं रह गया। आप आठवीं-दसवीं पास चपरासी के लिए विज्ञापन दीजिए, तो बी.एस-सी., एम.एस-सी. पास लोगों की लाइन लग जाती है। सही आदमी चुनना बड़ा कठिन हो जाता है। ऊपर से सोर्स सिफ़ारिश भी इतनी तगड़ी, कि समझ में नहीं आता कि कैसे मना किया जाए। पोस्ट तो एक ही है, उसमें एक ही व्यक्ति को रखा जा सकता है। सबकी बात कैसे सुनें।
मैं आपको अपना परिचय दे दूँ। मैं घासीदास विश्वविद्यालय का रजिस्ट्रार डॉ. खत्री हूँ। यहाँ कर्मचारियों की भर्ती बोर्ड का मेम्बर भी हूँ। स्थायी और अस्थायी शिक्षकों की भर्ती के इंटरव्यू में भी बैठना पड़ता है। यक़ीन मानिए किसी इंटरव्यू मे बैठना सबसे मुश्किल काम है। विशेषकर पोस्ट तीन-चार ही हों और उम्मीदवार तीन-चार सौ। मज़बूरी में सब को इंटरव्यू के लिए बुलाना पड़ता है। न बुलाओ तो ये लोग कोर्ट से स्टे ले आते हैं, कि मैं तो योग्यता पूरी करता हूँ, मुझे क्यों नहीं बुलाया ?
बड़ा कष्ट होता है, दूर-दराज से लड़के अपना सूटकेस लिए आते हैं। अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए पुस्तकें पढ़ते रहते हैं, कि जाने कौन सा प्रश्न पूछ लें, जाने कौन सी बात बच गई है उसे पढ़ लें। अरे मूर्खों ! अपनी भ्रमजाल से बाहर निकलो। तुम्हारे इंटरव्यू का कोई मोल नहीं है। कौन सी दुनिया में रहते हो? जिसे सलेक्ट करना है, वह पहले ही तय किया जा चुका है। अब किताबें पलटने से तुम्हारी किस्मत नहीं पलटने वाली। जाओ! अपने घर जाओ ! अपना और हमारा समय खराब मत करो।
अभी पिछले हफ़्ते की ही बात है। पोस्ट थी लैब टेक्नीशियन की। योग्यता बी.एस-सी. होनी चाहिए। यही समझ में नहीं आता कि सामने बैठे उम्मीदवार से क्या सवाल किया जाए?
"एम.एस-सी.! फिजिक्स ! फ़र्स्ट डिवीज़न ! राइट ? " मैंने पूछा।
"जी हाँ।"
"तो आप इसमें क्यों आना चाहते हैं, यह तो बहुत छोटी पोस्ट है, आई मीन, तुम तो कहीं लेक्चरर, प्रोफ़ेसर के लिए भी एप्लाई कर सकते हैं।"
"जी हाँ, पर आजकल लेक्चरर की कोई पोस्ट नहीं निकलती, इसीलिए...."
"तो पी-एच.डी. कर लो। उसके बाद रिसर्च में अपना कैरियर बना सकते हो। कहीं फैलोशिप के लिए ट्राई किया ?"
"जी... नहीं।"
"क्यों? तुम तो बड़े ब्राइट लड़के हो, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? सामने पूरा कैरियर पड़ा है। अभी पढ़ो। रिसर्च करो। कोई फैलोशिप लेकर रिसर्च करने फ़ॉरेन भी जा सकते हो।"
"अभी.. मेरी फ़ाइनेंसियल पोज़ीशन ठीक नहीं है। इसलिए मैं फिलहाल नौकरी ही करना चाहता हूँ।"
"ओह ! तुम्हें कुछ कंप्यूटर वगैरह आता है?"
"जी हाँ सर! मैंने छ: माह का डिप्लोमा भी किया है।" वह कुछ उत्साहित हो गया।
"तो फिर ठीक है। मैं तो तुम्हें यही सलाह दूँगा कि अपने गाँव जाओ। आजकल हर जगह कंप्यूटर पर काम करने वालों की डिमांड है। पार्ट-टाइम कोई काम कर सकते हो। इस तरह तुम्हारा खर्चा भी निकल आएगा। और साथ-साथ पी-एच.डी. ज़रूर करना।"
"पर मैं पी-एच.डी. नहीं करना चाहता....!"
"मेरी सलाह मानो बेटे। इस नौकरी में अपना समय मत खराब करो। तुम्हें काफी आगे जाने है, रिसर्च करो और देश का नाम रोशन करो। तुम जैसे होनहार लड़कों की देश को ज़रूरत है। ठीक है? ओ.के.! बेस्ट ऑफ़ लक फ़ॉर योर ब्राइट फ़्यूचर।"
"थैंक्यू ... सर। मैं आपकी सलाह याद रखूँगा।" बोलकर वह निकल गया।
मेरी समझ में नहीं आता कि ऐसी कौन सी आफत आ गई है। क्यों लोग एक छोटी सी नौकरी के पीछे पागलों की तरह टूट पड़े हैं। ऐसे होनहार लड़के इतनी जल्दी हिम्मत हार जाएंगे तो देश का क्या होगा। शायद उसे मेरी सलाह पसंद नहीं आई....। और फिर देने के लिए मेरे पास सलाह के अलावा कुछ है भी नहीं.....!
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13 comments:
आप की सलाह खोखली है ये वो भी जानता है इसी लिए नही पसंद आयी उसे। बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिती है ये
पैसा और मजबूरी इन दो चीजों के आगे किसी की नही चलती है।
बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियाँ हैं..मगर एक अनार सौ बीमार..आप भी क्या कर सकते है डॉ साहेब...
कंप्यूटर का डिप्लोमा करने वाले को आपने बहुत सही सलाह दी। वैसे हमें भरोसा है कि आपकी सलाह लोगों के बहुत काम आ रही होगी
ANAND JI BAHUT HI ACHHI BAT RAKHI HAI APNE.AJ PAHLI BAR APKE BLOG PAR AAYA.BAHUT ACHHA LAGA.BADHAI KUBUL KIJIE.
Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Webcam, I hope you enjoy. The address is http://webcam-brasil.blogspot.com. A hug.
एकदम सही।
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया , अच्छा लिखते हैं आप, क्रम बनाए रखें !
आनन्द जी,
पूरे देश का माहौल ही बिगाड़ कर रख दिया गया है। यह सब गलत शिक्षा और गलत नीतियों का परिणाम है। यह एक तरह से भ्रष्टाचार की अवैध सन्तान है - जी हाँ सन जानते हैं कि हर कोई क्यों आराम की नौकरी के पीछे भाग रहा है; या हर कोई क्यों चापरासी बनने के लिये लालायित है - "भ्रष्ट पैसे की आशा" !
आजकल भारी मात्रा में बच्चे इंजीनियरिंग कर रहे हैं। उनको रटी-रटायी बाते सिखा दी जाती हैं। इसके बदले में उनकी मौलिकता (ओरिजिनालिटी) को गिरवी रख लिया जाता है। कालेज से निकलने पर उस 'इंजीनीयर' का 'आत्मविश्वास' इस कदर नीचा होता है कि वह कोई नयी तकनीकी आइडिया को आजमाने की सोच भी नहीं सकता। आईआईटी से निकल गये तो क्या - नौकरी के सिवा कुछ करने का साहस ही नहीं है। रोजगार का सृजन कैसे होगा? यदि 'इंजीनियर' और 'मैनेजर' खुद ही नौकरी करने के लिये मारे-मारे फ़िरेगा तो किससे आशा की जा सकती है?
समाज में कार्य कर सकने वालों को काम न मिलना सबसे बड़ा संकट है। इसके बिना न व्यवस्था ठीक होगी, न विकास होगा।
बढती जनसँख्या घटते रोजगार परेशानी का सबब है.....शायद कही उम्मीद नजर आये
bahut shandaar!!
आनंद जी, पांच महीने का मौन बहुत होता है। अब वापस आ जाइए। लेखनी चलाइए। कुछ भी लिखिए। आप जो भी लिखेंगे, अच्छा ही होगा।
आनंद कहां हो । ज़रा अपना नंबर भेजो ।
yunus.radiojockey@gmail.com
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