Monday, December 3, 2007
बायोडाटा ऐसा बनाओ कि नौकरी देने वाला विवश हो जाए _____!
आपने गौर किया होगा कि जब से प्राइवेट तथा मल्टीनेशनल कंपनियों का ज़ोर बढ़ा है, हमारे यहाँ नौकरियों में भर्ती की प्रणाली में काफ़ी बदलाव आ गया है। पहले इम्तहान के नंबरों के आधार पर सीधे फैसला ले लिया जाता था। इंटरव्यू होते भी थे, तो नाम-मात्र के। अब सरकारी कंपनियों में भी लोग इंटरव्यू और स्मार्टनेस को बहुत महत्व देने लगे हैं।
मेरा नाम जे.पी. देशपांडे है। यहाँ ग्वालियर में बैंक में काम करता हूँ। मैंने भी नौकरी पाने के लिए बहुत पापड़ बेले हैं। हमारे समय में गाइड करने वाला कोई नहीं था। इसलिए काफ़ी भटकना पड़ा। अब कोई बेरोज़गार युवक मुझसे सलाह माँगता है तो मैं उसका पूरा सहयोग करता हूँ।
पड़ोस का एक लड़का नौकरी की तलाश में था। एक दिन वह मेरे पास सलाह लेने आया। मैंने सबसे पहले उसका बायोडाटा देखा। सबसे पहले उसमें सुधार की ज़रूरत थी। मैंने उसे सलाह दी -
"बायोडाटा पुराने स्टाइल का है, आजकल के हिसाब से ठीक नहीं है। बायोडाटा ऐसा होना चाहिए कि देखने वाला इंप्रेस हो जाए।"
"तो इसे कैसा बनाएँ?"
"सबसे पहले तो इसे उलटा कर दो। मतलब कि जो कुछ इसमें नीचे है, वह ऊपर लिखो और जो ऊपर लिखा है उसे नीचे करो, जैसे इसमें तुमने अपने नाम, पिता का नाम से शुरू किया है। यह सब पढ़ने का टाइम किसके पास है? इसे सबसे लास्ट में लिखो।"
"अच्छा!"
"इम्तहान में कितने नंबर हैं, इसे भी बाद में ले जाओ।"
"तो शुरूआत में क्या लिखूँ?"
"शुरूआत में अपनी विशेषताएँ बताओ। तुम्हारी विशेषताएँ क्या हैं?" मैंने उससे पूछा।
"मैं पढ़ाई में तेज हूँ।"
"नहीं। यह सब नहीं चलता। इसके बदले कोई दूसरी विशेषता सोचो।"
"दूसरा.... मैं खेलकूद में अव्वल हूँ।"
"अरे यार। इनसे काम नहीं चलता। विशेषताएँ ऐसी लिखो कि तुम्हारी पर्सनैलिटी का पता चले जैसे कि तुम फ्रेंडशिप जल्दी करते हो, तुम्हारे अंदर लीडरशिप की क्वालिटी है, तुम हँसमुख हो, मुसीबत में भी हँसते रहते हो, वगैरह.." मैने उसे समझाया।
"पर भैया यह सब तो नहीं हैं। मैं फ्रेंडशिप जल्दी नहीं कर पाता।"
"जो भी हो, पर लिखना यही। समझे! "
"जी समझ गया।" वह मेरे सुझाव से उत्साहित था।
"और तुम्हारी हॉबी क्या है? मतलब तुम्हें क्या करना पसंद है?"
"हॉबी.... फिल्में देखना, सोना, टीवी देखना...."
"यह सब तो रहने दो। इसके बदले लिखो कि तुम्हें माउंटैनिंग, ट्रैकिंग, घूमना-फिरना, लोगों का कल्चर स्टडी करना वगैरह पसंद है।"
"नहीं, सब तो बिलकुल पसंद नहीं, यह ट्रैकिंग क्या होती है?"
"यह जो भी हो, लिखना यही चाहिए।"
"जी समझ गया।"
"और यह भी लिखना पड़ता है कि तुम्हारा लक्ष्य क्या है। तुम अपनी जिंदगी में क्या करना चाहते हो?" मैंने उससे पूछा।
"मैं अच्छी नौकरी करना चाहता हूँ। गाड़ी और घर खरीदना चाहता हूँ।"
"धत् तेरे की। यह कभी मत कहना। हमेशा कहना कि मैं अपने फ़ील्ड में टॉप पर पहुँचना चाहता हूँ। समझे?" मैंने पूछा।
"समझ गया।" वह सिर हिलाया।
"और सबसे अंत में अपना नाम, पता, और अपने पिता का नाम लिखना चाहिए। समझे?"
"जी समझ गया। पिता का नाम क्या लिखना ठीक रहेगा। इसे असली लिख दूँ?" वह पूछा।
मैं सोच में पड़ गया। इस पर तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।
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9 comments:
आनंद आ गया जी.
यही सब बायोडाटा बनाने में इन्हीं सब फ्राड की उम्मीद की जाती है.
हा हा हा हा आनन्दित कर दिया आपने तो.........
Vaise Aap part time ek job cunsulting ka kaam kyo chalu nahi kar dete ..... vaise aapne jo kuchh bhi kaha hai .... vo .. MBA ke sylabus me bhi shamil hona chahiye ..... :) :) :)
इसी तरह के बायोडेटा मैं दिन भर टाइप करता रह्ता हूँ, कई बार तो उम्मीदवार को देखकर ही हंसी आ जाती है।
जो अखबार को कभी हाथ नहीं लगाता, वह टाइप करवाता है-
Hobbies: Reading books and Listening to music
मजा आ गया आनन्दजी
मस्त!!
मजेदार !!
mazaa aa gaya, yahi sab to chalta hai aajkal, sinkiya pehalwaan, khud ko athelete batate hain aur jinka kitaabos se kabhi koi vaasta nahi raha, wo khud ko mahaan reder batate hain, kaash aisi biodata banane ki kala hamko bhi koi sikha jata.
u r write mr. aanand
आज के समय मे यही चलता है
vav ye sab ti pata hi nhi tha, thnks, ab meri pragti mujme hai, yes i m possible.
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