Wednesday, November 7, 2007

भागचंद मारवाड़ी को बि‍ज़नेस का नया नुस्‍ख़ा मालूम नहीं है ___!


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


मेरा नाम साजन कुमार सिंधी है। पढ़ाई 10वीं से अधिक नहीं चल पाई, पढ़ने में मन नहीं लगता था, और कुछ घर की आर्थिक स्थिति अच्‍छी नहीं थी इसलिए सीधे बिज़नेस में लग गया। मेरा गुपचुप (पानी-पुरी) और चाट का छोटा सा बिज़नेस है। शाम-शाम में ही अच्‍छी कमाई हो जाती है। मेरी साथ के पढ़े लिखे लड़के बी.ए., एम.ए. कर अभी भी घूम रहे हैं, उनकी नौकरी का ठिकाना नहीं है। अच्‍छा हुआ मैं पढ़ने-लिखने के चक्‍कर में नहीं पड़ा, सीधे बिज़नेस में लग गया।

माँ बाप ने मेरा नाम बहुत अच्‍छा रखा है। साथ पढ़ने वाली लड़कियाँ मेरा नाम लेते हुए शरमा जाया करती थीं, कुछ तो मेरा नाम ही नहीं लेती थीं, सिर्फ एस.के. कह कर बुलाती थीं। ख़ैर यह सब तो पुरानी यादें हैं, अब तो बिज़नेस में इतने व्‍यस्‍त हैं कि यह सब याद करने की फुरसत ही नहीं मिलती। हमारे बिज़नेस का एक उसूल है लोगों से बोल-चाल में वि‍नम्रता होना चाहिए। कोई कभी गुस्‍से में कड़ा भी बोल जाए, तो उसका बुरा न मानो क्‍योंकि कोई भी आदमी दिल से बुरा नहीं होता है। सबसे बड़ी बात यह कि हर आदमी एक ग्राहक होता है, और ग्राहक भगवान का रूप होता है।

मैंने कहीं पढ़ा है बिज़नेस बढ़ाने का एक नुस्ख़ा और है - पहले लोगों से उनका हाल-चाल, घर-परिवार की ख़ैरियत पूछना चाहिए और फिर काम की बात करनी चाहिए। इससे अपनापन बढ़ता है जो लांग टर्म रिलेशन बनाने के लिए अच्‍छा होता है। जिसने भी यह बात कही है बिलकुल ठीक है। सचमुच, हम कहाँ जा रहे हैं ! न दुआ न सलाम, सीधे-सीधे काम पर आ जाते हैं, आजकल किसी को एक दूसरे का हाल जानने की फुरसत ही नहीं है!

एक मिनट, मुझे एक काम याद आया। मुझे भागचंद मारवाड़ी से बात करनी है, उनकी दुकान में आलू आया या नहीं, पूछना है। इस इलाके में आलू कि‍राने की दुकान में मि‍लता है। यह तो भला कि आजकल मोबाइल आ गया है, क्‍या ग़ज़ब चीज़ बनाई है, कितनी सुविधा हो जाती है इससे।

"हैलो कौन बोल रहा है? भागचंद से बात कराइए!" मैने भागचंद की दुकान में नंबर मिलाया। मैं भागचंद से आलू थोक में ख़रीदता हूँ।

"मैं भागचंद ही बोल रहा हूँ भाया।"

"नमस्‍कार सेठ जी, मैं चटखारा से साजन कुमार बोल रहा हूँ। कैसे हैं आप?"

"ऊपर वाले की दुआ से खैरियत है।" मैं भी ऐसे ही नहीं छोड़ने वाला। लगता है भागचंद मारवाड़ी जी को यह नुस्‍ख़ा नहीं मालूम है।

"और परिवार में सब कैसे हैं, बाल बच्‍चे?"

"ठीक ही हैं, तुम्‍हारी भाभी इस समय बीमार चल रही है। वही गठिया की शिकायत.. आजकल चल-फिर नहीं पाती, इसलिए एक नौकरानी रख छोड़ी है। बड़ा तो मेरे साथ दुकान में ही बैठता है, उसके रिश्‍तेवाले आए थे... मैंने तो उनसे साफ कह दिया कि भई, काम धाम वाला घर है। अभी तो वापस चले गए हैं। जैसा भी होगा फोन से बताएंगे। दूसरे नंबर वाले का दो सब्‍जेक्‍ट में ट्यूशन लगा दिया है फिर भी कहता है और ट्यूशन पढ़ेगा.. सब कमबख़्त खाली करके छोड़ेंगे। सबसे छोटी वाली ...."

"अरे बाल बच्‍चों की चिंता छोड़ि‍ए, सब ठीक हो जाएगा। बताइए काम-धाम कैसा चल रहा है?" ये तो रामायण ही खोलकर बैठ गया, मैंने इसे मोबाइल से फोन क्‍यों कि‍या?

"बाज़ार में आजकल बड़ी मंदी है। शादी का सीजन आने में तीन महीने हैं। ट्रांसपोर्ट वाले अपना रेट बढ़ाने वाले हैं। सोचता हूँ रेलवे से माल मंगाना शुरू कर दूँ, पर खर्चा फि‍र भी डबल का डबल ही पड़ेगा। गोदाम यहाँ से दूर पड़ता है इसलि‍ए यहीं कहीं आसपास एक और गोदाम ढूँढ रहा हूँ, तेरी नज़र में है क्‍या कोई जगह भाया?"

"फ़ि‍लहाल तो नहीं है, ठीक हैं अभी रखता हूँ।"

"अरे भाया, यह तो बता कि‍ फोन क्‍यों कि‍या था?"

"मैं पूछना चाहता हूँ कि‍ नए माल में आलू आया कि‍ नहीं।"

"तो सीधे-सीधे पूछ न, टाइम क्‍यों बर्बाद करता है? आलू वाला ट्रक कल पहुँचेगा। और कुछ?"

"नहीं, इतना बहुत है।" और मैंने जल्‍दी से फ़ोन काट दि‍या। ओह, फि‍र गलती हो गई, मैंने फोन काटने से पहले धन्‍यवाद या गुडबाई तो कहा ही नहीं___!

5 comments:

sanjay patel said...

आपके इस संस्मरण में मानवीय तक़ाज़ों की भीनी महक है. गुज़रे ज़माने की पेढियों के रिश्ते सिर्फ़ धंधे के नहीं दुख सुख के होते थे. मै खु़द इन बातों का ख़याल रखते हुए अपनी जीविका चला रहा हूँ.ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं फ़िर भी क़ामयाब हूँ.धनतेरस पर मूल्य आधारित इस प्रविष्टि को पढ़ कर लगा जैसे किसी ने हथेली पर विक्टोरिया वाला चाँदी का सिक्का धर दिया.

Udan Tashtari said...

Hi Sajan,
आप हो भले ही १० वीं पास मगर बिजनेस के गुर एक एम बी ए से ज्यादा जानते हो. अब क्या करियेगा, कभी कभी भागचंद जैसे बातूनी लोग मिल जाते हैं तो उनसे अपना समय न खोटा करें और न ही दिल छोटा करें. हाँलांकि सिंधी भाई को कोई मोबाईल का लम्बा बिल चिपका दे, तो अखरता तो है ही.

मैं तो खुद ही कम शब्दों में पूरी बात करने का आदी हूँ. आपने तो मेरी पोस्टस देखी ही हैं. अब मैं खुद से क्या अपनी तारीफ बतलाऊँ.

दीपावली मंगलमय हो, बहुत शुभकामनायें.

LIC Adviser said...
This comment has been removed by the author.
LIC Adviser said...

Bahoot achhe Saajan bhai ... Ab to aap dheere-dheere Gupchup ka kaam shift karke ke apna ek MBA Institute khol hi lo ( shuruvaat ke liye gupchup ki dookan me hi kuchh trainee rekhana chalu karo, Double kamai :) :) ).... bahoot achha experience bataya aapne

aarsee said...

सही है सर , मज आ गया।

साथ ही दीपावली की शुभकामनायें।